दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
अर्थ: मैं श्री गुरु के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुनाथजी के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - चारों फलों को देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
अर्थ: हे पवनपुत्र! मैं स्वयं को बुद्धिहीन और निर्बल मानते हुए आपकी शरण में आया हूँ। मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें और मेरे दुखों व दोषों का नाश करें।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
अर्थ: हे हनुमान जी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! तीनों लोकों में आपका यश प्रकाशित है।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
अर्थ: आप भगवान श्रीराम के दूत और अपार बल के भंडार हैं। आप अंजना माता के पुत्र और पवन देवता के नाम से प्रसिद्ध हैं।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
अर्थ: आप महान पराक्रमी और बज्र के समान शरीर वाले हैं। आप कुबुद्धि का नाश करते हैं और शुभ बुद्धि के साथी हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
अर्थ: आपका रंग सोने के समान चमकदार है। आपके कानों में कुण्डल शोभायमान हैं और आपके केश घुँघराले हैं।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
अर्थ: आपके हाथों में बज्र और ध्वजा सुशोभित हैं। आपके कंधे पर पवित्र जनेऊ शोभित है।
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
अर्थ: आप भगवान शिव के अंश और केसरी के पुत्र हैं। आपका तेज और प्रताप संपूर्ण जगत में पूजनीय है।
विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
अर्थ: आप विद्वान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ: आप श्रीराम के चरित्र को सुनने में आनंद लेने वाले हैं। आपके हृदय में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सदा वास करते हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण करके माता सीता को दिखाया और विकराल रूप धारण कर लंका का दहन किया।
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
अर्थ: आपने भयंकर रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीराम के कार्यों को पूर्ण किया।
लाय संजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुवीर हरषि उर लाए॥
अर्थ: आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवनदान दिया, जिससे श्रीराम ने हर्षित होकर आपको गले लगाया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
अर्थ: श्रीराम ने आपकी अत्यधिक प्रशंसा की और कहा कि आप मेरे भरत के समान प्रिय भाई हैं।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
अर्थ: हजार मुख वाले शेषनाग भी आपके यश का गुणगान करते हैं। ऐसा कहकर श्रीराम ने आपको गले लगाया।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
अर्थ: सनक, सनन्दन जैसे ऋषि, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती और शेषनाग भी आपकी स्तुति करते हैं।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ: यमराज, कुबेर, दिक्पाल आदि सभी आपकी महिमा का वर्णन करते हैं। आपकी महिमा का गान कवि और विद्वान भी नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
अर्थ: आपने सुग्रीव को श्रीराम से मिलाकर उनका उपकार किया और उन्हें राजगद्दी दिलाई।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ: आपके दिए मंत्र को मानकर विभीषण लंका के राजा बने, यह बात संपूर्ण जगत जानता है।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ: आपने सूर्य को हजार योजन दूर मानकर मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥
अर्थ: श्रीराम की अंगूठी को मुँह में रखकर आपने समुद्र को पार कर लिया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ: संसार में जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ: आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
अर्थ: आपकी शरण में आने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं। आपकी रक्षा में किसी प्रकार का भय नहीं है।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
अर्थ: आप अपने तेज को स्वयं नियंत्रित करते हैं। आपके गर्जन से तीनों लोक काँप उठते हैं।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥
अर्थ: आपके नाम का स्मरण करते ही भूत-पिशाच पास नहीं आते।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ: आपके नाम का निरंतर जाप करने से सभी रोग और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
अर्थ: जो मन, वचन और कर्म से आपका ध्यान करता है, उसे संकटों से हनुमान जी छुड़ा देते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥
अर्थ: श्रीराम तपस्वी राजा हैं और उनके सभी कार्य आपने पूरे किए।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ: जो भी मनुष्य आपकी शरण में अपने मनोरथ लेकर आता है, वह अनंत फल पाता है।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
अर्थ: आपके प्रताप से चारों युगों में आपकी कीर्ति फैली है। आपका यश संपूर्ण विश्व में प्रकाशमान है।
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अर्थ: आप साधु-संतों के रक्षक, असुरों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं।
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
अर्थ: माता सीता ने आपको वरदान दिया कि आप अष्टसिद्धि और नव निधि के दाता होंगे।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
अर्थ: आपके पास श्रीराम का नाम रूपी अमृत है। आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहें।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अर्थ: आपके भजन से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्मांतर के दुःख मिट जाते हैं।
अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
अर्थ: जीवन के अंत में श्रीराम के धाम को प्राप्त होता है, और अगले जन्म में भी हरि भक्त कहलाते हैं।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
अर्थ: अन्य देवताओं की उपासना करने की आवश्यकता नहीं। केवल हनुमान जी की भक्ति से सभी सुख प्राप्त होते हैं।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अर्थ: जो हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
अर्थ: हे हनुमान जी! आपकी जय हो। कृपया मेरे ऊपर गुरुदेव के समान कृपा करें।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
अर्थ: जो व्यक्ति इसका सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त होकर महान सुख प्राप्त करता है।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
अर्थ: जो हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है। इसके साक्षी स्वयं भगवान शंकर हैं।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
अर्थ: तुलसीदास सदा हरि का सेवक है। हे हनुमान जी! मेरे हृदय में निवास करें।
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ: हे पवनपुत्र! आप संकटों का हरण करने वाले और मंगल स्वरूप हैं। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी के साथ मेरे हृदय में निवास करें।